Sunday, November 15, 2009

Mukhauta Sa Lagta Hai

आज पढिये मेरे पिताजी श्री सुरेश  'जोगी' की एक कविता.....
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मुखौटे  के  बावजूद , पहचान  लिया  जाता  हूँ 
फिर  जहां  खड़ा  किया  जाता  है
हजूम  होता  है 
सवालात  किये  जाते  हैं .

सर  के  इर्दगिर्द  मंडराता  परिंदा
कुछ  यूँ  सोचता  होगा  कि
यह  शख्स  गुनाहगार  तो  नहीं  ?


चाबुक  जुबानें  चलेंगी
फौलादी  हाथ  उठेंगे
और  मैं  चेहरे  चेहरे  में  करूंगा , हमदर्द   की तलाश

शाम  का  पहला  सितारा 
उदास  सा  लगता  है , आखिर
चराग  क्यूँ गुल  कर  दिए  जाते  हैं ?

कि
मुझे  नीम  अँधेरे  में 
हर  चेहरा
मुखौटा  सा  लगता  है ………
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2 comments:

  1. BAHOOT HI GAHRI RACHNA HAI .. AAJ KI DUNIYA MEIN HAR KOI MUKHOTA LAGA KAR CHALTA HAI ...ACHEE RACHNA ...

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