रोज़ आती है
वो मेरे करीब
जब मैं सो रहा होता हूँ
मुस्कुराते हुए छेड़ती है मुझे ,
लगाती है गुदगुदी तो
कभी लेती है चुटकियाँ
और कभी फिराती है
मेरे चेहरे पर दुपट्टा अपना ,
थाम लेता हूँ जब नींद में कभी
तो खिलखिला उठती है वो,
छलकने लगता है बचपन उसका,
करती रहती है
मेरे जागने का इंतजार वो,
जलाती बुझाती रहती है
सिरहाने रखा चिराग ,
जब थक जाती है
करती हुई इंतजार,
तो देख के एक नज़र
चली जाती है वो मुझे छोड़
कभी न मिलने की बात कहकर ,
चली जाती है हमेशा के लिए
मुझसे रूठकर
पर रोज़ आती है वो ,
जब मैं सो रहा होता हूँ .
Monday, October 19, 2009
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