----------------------------------
मेरे इश्क के जख्म
अक्षर अक्षर रंग बदले
सांस सांस आग बने
मेरी तन्हाई का मनहूस सफा
कोरा का कोरा ही रहा
जब चाहा जिसे -कोसा
जज्वात के पूरे काफिले को
अहद की बारूद पर रोक दिया
लम्हा लम्हा मेरी तकदीर
आँख की तरह फडके
और
मेरा ‘मैं’ मुझसे जिद करे
लेकिन मेरा ‘मैं’ नपुंशक है ……..
-------------------------
मेरी तन्हाई का मनहूस सफा
ReplyDeleteकोरा का कोरा ही रहा
मैंने जब चाहा फाड़ दिया
जब चाहा जिसे -कोसा ...
dil ki gahraaiyon se likhi sundar rachna hai ...
जज्वात के पूरे काफिले को
ReplyDeleteअहद की बारूद पर रोक दिया
bahut hi badhiyaa
kafi gehra likhte hain aap...achcha laga aapki rachnayen padhkar...
ReplyDeleteblog par aane ka bhaut shukriya.
अच्छा बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप
ReplyDeleteयूँ ही लिखते रहें अच्छे लेखकों को पढ़ना और यथा संभव अपनी प्रतिक्रिया देना भी अच्छी आदत है
पिता जी की कविता 'मुखौटा सा लगता है' --लाजवाब है। मंटो की लघु कहानियाँ बेहद अच्छी हैं खासकर
'बेखबरी का फायदा'।