आज बात करूंगा आस्था की. बड़ी अहम् जरूरत होती है जीवन में आस्था की. पर सवाल यह है की आस्था है क्या ? किसके लिए है ? किस पर है ? पिता जी से पूछा एक बार तो उन्होंने कहा --->
अपने अंतस के व्यूह में फंसा
तुम्हारी टोह में छटपटाता
अंधाधुंध भागता हूँ,
बस यही,
इतनी ही मेरी आस्था है.
Tuesday, November 24, 2009
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हां आस्था तो यही है. अच्छी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअपने अंतस के व्यूह में फंसा
ReplyDeleteतुम्हारी टोह में छटपटाता
अंधाधुंध भागता हूँ,
बस यही,
इतनी ही मेरी आस्था है.
sahi kaha yahi aastha hai ,achchha likha hai
mere vichar me chatpatana bhagana koshish hai kyoki pa sakate hai ye aastha hai aapko ?aastha hai to vishvas bhee peeche peeche aaega .
ReplyDeleteरोहित ,
ReplyDeleteआपने अच्छा लिखा है .किसी की आस्था पर कोई किंतु परंतु हो ही नहीं सकता . आप मेरे ब्लॉग पर आए .आप ने शब्द चित्र पढ़ा .सराहा ,धन्यवाद .इसलिए कि इसमें जीवन और मौत से सीधे मुठ भेड़ कर रही औरत का चित्र है .
अपने अंतस के व्यूह में फंसा
ReplyDeleteतुम्हारी टोह में छटपटाता
अंधाधुंध भागता हूँ,
बस यही,
इतनी ही मेरी आस्था है...
रोहित जी आस्था विश्वास का ही तो दूसरा रूप है ......फिर ये चाहे ईश्वर के प्रति हो या किसी अपने प्रिय के प्रति दोनों ही रूपों में ये पूर्ण समर्पण मांगता है .....!!
अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।
ReplyDeletewaah choti si rachna ka bada kamaal
ReplyDelete... बहुत ही सुन्दर !!!!
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