आज पेश कर रहा हूँ हकीकत बयाँ करती एक नज़्म जो निकली है मेरे पिता जी 'श्री सुरेश 'जोगी' की कलम से और आज आपके सामने है..................
पत्थर की नदी पर
सितारों का काफिला उतरा
पत्थर नदी की अपनी वेदना थी
सितारों का अपना दर्द था.
दोनों ने शिकायत भरा ख़त
बस्ती के नाम लिखा,
नदी की शिकायत थी
कोई मल्लाह लंगर नहीं खोलता
सितारों का शिकवा था
कोई छोरी आँचल नहीं भरती.
हवा ने कहा
पत्थर नदी में आग पलती है
सितारों का काफिला
प्यास उगलता है
बस्ती की शिकायत है
न पत्थर की नदी होती है
न सितारे ज़मीं पर उतरते हैं
और, हर आँख ने कहा
कि हमने नहीं देखा ...
Friday, December 4, 2009
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wah ji wah! narayan narayan
ReplyDeletewao.....
ReplyDeleteऔर, हर आँख ने कहा
कि हमने नहीं देखा ...
---यतार्थ चित्रण।
पत्थर की नदी पर सितारों के काफिले को बस्ती वाले क्या समझें
ReplyDeleteये सभी एक दूसरे की शिकायत करने के लिए ही बने हैं।
मर्म तो कवि की बेचैनी ही समझ सकती है
जो किनारे बैठ
सबकी शिकायतें सुन रहा है।
हर किसी का अपना अपना दर्द है .......... कविता में बिंबोब् के माध्यम से कवि ने अपनी बात प्रभावी तरह से रक्खी है ........ बेहतरीन रचना है ..................
ReplyDeleteaapke pitaji vakai bahut achchha likhte hai rohit.kya aap bhi kavita karte hain?
ReplyDeleteNamaskar Kavita Ji, Main bhi likhta hoon,halanki filhaal Aatm-Vishleshan ke dour me hoon.halanki Aatm-Vishleshan to hamesha chalta hai, parantu abhi shuruati charan mein hoon.............pratikriya ke liye dhanybaad.
ReplyDeleteऔर, हर आँख ने कहा
ReplyDeleteकि हमने नहीं देखा ...
...........very nice.....
बहुत खूब लिखा है । सही है कवि की बात आम हिसाबी लोगों की समझ में आने से रही ।
ReplyDeleteबहुत खूब बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआभार